अब संसद में बहस के बीच भी सांसद नहीं कर सकेंगे इन शब्दों का इस्तेमाल, अध्यक्ष ने जारी की पूरी लिस्ट...

सरकार ने सदन की कार्यवाही के दौरान कुछ शब्दों को असंसदीय बताकर उनके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है;

Update: 2022-07-14 11:12 GMT

मानसूम सत्र (Mansoon Session) से पहले सरकार ने बड़ा ऐलान करते हुए संसद (लोकसभा व राज्यसभा) में कुछ शब्दों पर पाबंदी लगाते हुए सख्ती से पालन करने का आदेश दिया है. जिस पर जोरो शोरों से भारत की राजनीती में गरमाहट महसूस की जा सकती है. आइए जानते है की सरकार ने संसद में प्रयोग होने वाले किन शब्दों पर पाबंदी लगाई है।

संसद में अक्सर बहस के दौरान जुमलाजीवी ,तानाशाह ,शकुनी ,जयचंद, विनाश पुरुष, खून की खेती, नाटक करना , नोटंकी करना, आदि शब्दों का इस्तेमाल होता देखा गया है, लेकिन केंद्र सरकार ने इन शब्दों को असंसदीय बताकर इनके इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है. (Loksabha) लोकसभा सचिवालय के मुताबिक अब इन शब्दों को संसद में कार्यवाही या बहस के दौरान नहीं बोला जा सकेगा.

केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद ही विपक्ष की ओर से राजनीती शुरु हो गई है जिसमें राहुल गांधी के साथ – साथ आम आदमी पार्टी भी शामिल है. लेकिन यहां यह बात जानना जरुरी है की पहले भी  समय समय पर लोकसभा सचिवालय द्वारा ऐसे अनेक शब्दों को असंसदीय बताकर सूची में शामिल किया गया है जिन्हें लोकसभा व राज्यसभा द्वारा समय समय पर हटाया गया है

इस मसले पर भारतीय संविधान क्या कहता है

भारतीय संविधान में शामिल आर्टिकल 105(2) के अनुसार सांसदों को विशेषाधिकार मिला है की सदन के अंदर बहस के दोरान सांसद के कुछ भी कहने पर उन पर कोई कानूनी प्रक्रिया के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. इसीलिए भारतीय संविधान ने लोकसभा के नियम 380 के तहत लोकसभा अध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह सदन से अपशब्दों को नियम 381 के तहत असंसदीय करार देकर इनके इस्तेमाल पर रोक लगा सकता है या सदन से बाहर निकाल सकता है.

विपक्ष का हमला

इस फैसले की निंदा करते हुए राहुल गांधी ने इसे ऩए इंड़िया की नई ड़िक्शनरी बताया है उन्होंने कहा की जिन शब्दों से सरकार का कामकाज की नींदा की जाती है उन्हीं शब्दों पर पाबंदी लगाई जा रही है.आम आदमी पार्टी भी इस फैसले का विरोध किया है आम आदमी पार्टी के सांसद राधव चड्डा ने कहा कि सरकार ने आदेश निकाला है कि संसद में सांसद कुछ शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकते. उन शब्दों को पढ़कर लगता है की सरकार बखूबी जानती है की उनके काम को कौन से शब्द परिभाषित करते है.

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