न्यायालय की लेटलतीफी के शिकार हुए जज, खुद को बेगुनाह साबित करने में लगे 18 साल

कभी-कभी कुछ इतने अजीब किस्से सामने आ जाते हैं जिसे सुनकर हैरत होती है और मुंह से बस यही निकलता है कि आखिर इनके साथ कैसे हो गया? ऐसा ही एक किस्सा गुजरात के एक जज के साथ जुड़ा है।;

Update: 2019-09-10 06:16 GMT

कभी-कभी कुछ इतने अजीब किस्से सामने आ जाते हैं जिसे सुनकर हैरत होती है और मुंह से बस यही निकलता है कि आखिर इनके साथ कैसे हो गया? ऐसा ही एक किस्सा गुजरात के एक जज के साथ जुड़ा है।

आज से 18 साल पहले गुजरात के एक सिविल जज योगेस एम व्यास के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उस आरोप को गलत साबित करने के लिए जज को 18 साल का इंतजार करना पड़ा। और जब न्याय मिला तबतक वह रिटायर हो जुके थे।

1992 से लेकर 1994 तक वह गुजरात के विसनगर में सिविल जज थे। योगेस एम व्यास पर आरोप लगा कि उन्होंने कानून ताक पर रखकर 7 जमानत आदेश पारित कर दिए। इस मामले की जांच करते हुए उन्हें भ्रष्ट्राचार लिप्त बताकर अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई।

सिविल जज व्यास ने इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। लंबी लड़ाई के बाद कोर्ट ने उन्हें बेगुनाह करार दिया। चूंकि रिटायरमेंट की उम्र को वह पार कर चुके थे इसलिए उन्हें बहाल नहीं किया जा सका, इसके एवज में उन्हें अगले 6 महीने में 20 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। 

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