Sunday Special: स्वामी विवेकानंद के मठ में प्रवेश की उनकी मां को भी नहीं थी अनुमति, पुण्यतिथि पर जानें उनकी अनसुनी बातें

ग्रेजुएशन की डिग्री होने के बाद भी स्वामी विवेकानंद को रोजगार की तलाश  में घर-घर जाना पड़ता था। वह जोर से कहते मैं बेरोजगार हूं। नौकरी की तलाश करते करते जब वह बहुत ही ज्यादा थक गए तो उनका भगवान पर से भरोसा उठ गया। और वे लोगों से कहने लगते कि भगवान का अस्तित्व नहीं है।;

Update: 2021-07-04 03:23 GMT

Sunday Special: Swami Vivekananda Death Anniversary 2021:- तेजस्वी और ओजस्वी वाणी के जरिए भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का दुनिया भर में डंका बजाने वाले स्वामी विवेकानंद की आज पुण्यतिथि है। 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में जन्में स्वामी विवेकानंद का निधन 4 जुलाई 1902 हो गया था। स्वामी विवेकानंद ने अपने इस छोटे से जीवन में जो किया उसे ना सिर्फ भारत बल्कि उसका डंका पूरी दुनिया में बजता है।  चलिए जानते हैं स्वामी विवेकानंद की अनसुनी बातें जो आपके जीवन में बदलाव जरूर लाएंगी।

* बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्वामी विवेकानंद का शैक्षिक प्रदर्शन औसत था। स्वामी विवेकानंद का विश्वविद्यालय में एंट्रेंस लेवल पर 47 प्रतिशत, एफए में 46 प्रतिशत और बीए में 56 प्रतिशत अंक मिले थे।

* बहुत ही कम लोगों को जानकारी है कि स्वामी विवेकानंद चाय के शौकीन थे। उन दिनों जब हिंदू पंडित चाय के विरोधी थे। तो गुड़ग्राम स्वामी विवेकानंद ने अपने मठ में चाय को प्रवेश दिया। एक बार बेलूर मठ में टैक्स बढ़ा दिया गया था। जिसकी वजह बताई गई थी कि यह एक प्राइवेट गार्डन हाउस है। बाद में ब्रिटिश मजिस्ट्रेट की जांच के बाद टैक्स हटा दिए गए थे।

* स्वामी विवेकानंद ने एक बार महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक को बेलूर मठ में चाय बनाने के लिए मनाया था। कहा जाता है कि स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक अपने साथ जायफल, जावित्री, इलायची, लॉन्ग और केसर लाए थे और सभी मौजूद लोगों के लिए मुगलई चाय बनाई थी।

* खबरों से मिली जानकारी के अनुसार स्वामी विवेकानंद के मठ में किसी भी महिला यहां तक कि उनकी मां तक को जाने की इजाजत नहीं थी। एक बार जब स्वामी विवेकानंद को बहुत तेज बुखार था। तो उनके शिष्य उनकी मां को बुलाकर ले आये थे। जब स्वामी विवेकानंद ने अपनी मां को देखा तो वह बहुत ही तेजी के साथ चिल्लाए और कहा कि तुम लोगों ने एक महिला को मठ के भीतर आने की इजाजत कैसे दी? मैं ही हूं जिसने यह नियम बनाया और मेरे लिए ही इस नियम को तोड़ा जा रहा है।

* ग्रेजुएशन की डिग्री होने के बाद भी स्वामी विवेकानंद को रोजगार की तलाश  में घर-घर जाना पड़ता था। वह जोर से कहते मैं बेरोजगार हूं। नौकरी की तलाश करते करते जब वह बहुत ही ज्यादा थक गए तो उनका भगवान पर से भरोसा उठ गया। और वे लोगों से कहने लगते कि भगवान का अस्तित्व नहीं है।

* स्वामी विवेकानंद के पिता का जब निधन हो गया था तो उसके बाद उनके परिवार पर बहुत गहरा संकट आ गया था। गरीबी के उन दिनों में सुबह विवेकानंद अपनी माँ से कहते थे कि उनको कहीं से दिन के खाने के लिए निमंत्रण मिला है। यह कहकर वह घर से बाहर चले जाते थे। लेकिन उन्हें असल में कोई भी खाने के लिए निमंत्रण नहीं मिलता था बल्कि वह ऐसा इसिलए करते थे ताकि घर के अन्य लोगों को खाने का ज्यादा हिस्सा मिल सके। स्वामी विवेकानंद ने लिखा था कि कभी मेरे खाने के लिए बहुत कम बचता था और कभी तो कुछ भी नहीं बचता था।

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