Haribhoomi Explainer: आज के दिन एवरेस्ट पर पड़ा था इंसान का पहला कदम, यहां जानिए पूरी कहानी

Haribhoomi Explainer: आज यानी 29 मई को ही 1953 में एवरेस्ट के शिखर पर इंसान का पहला कदम पड़ा था। इसके चलते ही आज का दिन अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। क्या आप जानते हैं कि एवरेस्ट पर सबसे पहले चढ़ने वाला इंसान कौन था, किस देश का था। अगर नहीं, तो आइये आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से जानते हैं कि एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहला इंसान कौन था और साथ ही एवरेस्ट से जुड़ी तमाम जानकारियां भी बताएंगे।;

Update: 2023-05-29 01:00 GMT

Haribhoomi Explainer: आज अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस दुनिया भर में मनाया जा रहा है। ​यह दिवस न्यूजीलैंड के सर एडमंड हिलेरी और नेपाल के तेनजिंग नोर्गे शेरपा के 29 मई, 1953 को माउंट एवरेस्ट पर विजय पाने के उपलक्ष्‍य में मनाया जाता है। इस दिन पहली बार कोई मानव 29 हजार फुट ऊंचे माउंट एवरेस्ट पर पहुंचा था। बौद्ध परम्परा के अनुसार, तेनजिंग ने पर्वत के शिखर पर मिठाईयां और बिस्किट बर्फ में दबाकर भगवान को प्रसाद चढ़ाया था। संयुक्त राष्ट्र संघ, नेपाल और भारत के ध्वज के साथ तस्वीरें ली और नीचे की ओर प्रस्थान करने लगे। इस उपलब्धि का उत्सव मनाने के लिए नेपाल में 2008 में 29 मई को अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस घोषित किया गया। इस दिन आज तक काठमांडू और एवरेस्ट के क्षेत्र में कई आयोजन किए जाते हैं।

28 मई को हिलेरी और नोर्गे ने शुरू की चढ़ाई

एडमंड और तेनजिंग ने 28 मई को चढ़ाई की शुरुआत की थी, लेकिन बर्फीले तूफान के कारण दोनों को अपनी चढ़ाई 27,900 फीट पर ही रोकनी पड़ी। सुबह के करीब 9 बजे उन्होंने अपना सफर फिर से शुरू किया। कुछ ही दूरी एक 40 फीट ऊंची बफीर्ली चट्टान थी। रस्सी की मदद से एक दरार से होते हुए हिलेरी चट्टान की ऊंचाई पर पहुंचे। इसके बाद नोर्गे भी उसी रस्सी की मदद से ऊपर आए और दोनों ने 11 बजे शिखर पर पहुंचकर इतिहास रच दिया था।

महज 300 फीट की दूरी से चूके थे हंट

बात है सन 1953 की जब माउंट एवरेस्ट फतह करने के लिए ब्रिटेन ने कर्नल जॉन हंट की अगुवाई में एक दल तैयार किया था। तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी भी इसी दल का हिस्सा थे। अप्रैल माह में तैयारी पूरी होने के बाद दल ने एवरेस्ट चढ़ना शुरू किया। 26 हजार फीट की ऊंचाई तक दल पहुंच चुका था। यहां से दल के दो लोग चार्ल्स इवांस और टोम बोर्डिलन ने 26 मई को आगे का सफर तय करना शुरू किया, लेकिन चोटी के 300 फीट दूरी पर ही उनका ऑक्सीजन मास्क खराब हो गया और उन्हें उसी समय वापस नीचे लौटना पड़ा। 

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला

एक बहुत पुरानी कहावत है कि अगर इंसान ठान ले, तो बड़े से बड़े काम भी आसानी से कर सकता है फिर चाहे पहाड़ों की चढ़ाई ही क्यों न हो। कुछ ऐसा ही हुआ था 1984 में जब भारत में एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए एक अभियान दल का गठन किया गया। इस दल का नाम 84 था, जिसमें 11 पुरुष और 5 महिलाएं थीं, लेकिन इसमें से केवल बछेंद्री पाल ने तूफान और कठिन चढ़ाई का सामना किया और माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला का खिताब हासिल किया।

बछेंद्री पाल को जानिए

1954 में नकुरी उत्तरकाशी में जन्मी बछेंद्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थीं। इनका जन्म एक खेतिहर परिवार में हुआ था। इन्होंने अपनी पढ़ाई बी.एड. तक की, फिर इन्होंने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग कोर्स में आवेदन किया। बछेंद्री पाल को 1986 में अर्जुन अवार्ड, पद्मश्री, पर्वतारोहण फाउंडेशन से गोल्ड मेडल और उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग ने भी गोल्ड पदक से नवाजा था।

अरुणिमा सिन्हा

अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं, जिन्होंने 2013 में माउंट एवरेस्ट फतह किया था। उत्तर प्रदेश की रहने वाली अरुणिमा सिन्हा राष्ट्रीय स्तर की पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी एवं पर्वतारोही रह चुकी हैं। 2011 में अरुणिमा सिन्हा का रेल हादसे में एक पैर कट गया था। अरुणिमा सिन्हा सात महाद्वीपों की सर्वोच्च पर्वत चोटियों पर चढ़ने वाली विश्व की पहली महिला दिव्यांग हैं।

करीबन 80 लाख रुपये का खर्च आता है एक बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का

एवरेस्ट पर चढ़ना न सिर्फ शारीरिक रूप से बेहद मुश्किल है, बल्कि यहां तक पहुंचने के लिए आपके पास में लाखों रुपये भी होने चाहिए। यहां चढ़ाई करने का पूरा खर्चा 80 लाख रुपये के आसपास आता है।

चढ़ने में लगते हैं लगभग 40 दिन

एवरेस्ट पर चढ़ने से पहले 10-15 दिन की ट्रेनिंग होती है, इसके बाद एवरेस्ट पर चढ़ने में लगभग 39-40 दिन लगते हैं। एवरेस्ट पर चढ़ने में इतना समय लगने का कारण यह है कि हमारा शरीर ऊंचाई पर जाने के दौरान मौसम के अनुसार, एडजस्ट हो सके। शिखर पर समुद्र के स्तर की तुलना में उपलब्ध ऑक्सीजन की मात्रा का केवल एक तिहाई है। पर्वतारोही आमतौर पर बोतलबंद ऑक्सीजन का उपयोग अत्यधिक ऊंचाई के प्रभावों का सामना करने में मदद करने के लिए करते हैं। 

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