लाख कोशिशों के बाद भी पिता नहीं जमा कर पाया फीस, बेटी ने कर ली आत्महत्या

शिक्षा के लिए अगर कोई आत्महत्या कर रहा है तो देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। एक पिता के सपनों में होता है कि उसका बच्चा पढ़ लिखकर डाक्टर, इंजीनियर और अफसर बने इसके लिए वह जमकर हाड़तोड़ मेहनत करता है पर जब पैसों के कारण वह हार जाता है तो वह खुद से ज्यादा बदनसीब समझता है। ऐसे बदनसीब पिता इस देश में बहुत हैं।;

Update: 2019-07-26 13:07 GMT

महाराष्ट्र में एक 20 वर्षीय छात्रा ने इसलिए मौत को गले लगा लिया क्योंकि उसके पिता के पास अच्छे कॉलेज की फीस जमा करने के पैसे नहीं थे। ऐसा नहीं कि पिता ने फीस जमा करने की कोशिश नहीं कि बल्कि उन्होंने तो अपना खेत तक बेच दिया पर खेत बेचने के बाद भी वह फीस जमा नहीं कर पाए। पिता की परेशानी और परिवार की तंगहाली बेटी से देखी नहीं गई और उसने जहर खाकर आत्महत्या कर ली।

ये मामला प्रदेश के सोलापुर जिले का है। इंटरमीडिएट में 89 फीसदी अंक लाने के बाद रुपाली रामकृष्ण पवार ने अच्छे कॉलेज में दाखिले के लिए कोयम्बटूर को चुना और बायोटेक करने के लिए वहां के एक कॉलेज फार्म भरा। इंट्रेंस परीक्षा में बैठी और अच्छे नंबर के साथ पास हो गई। और एडमिशन के लिए सीट कंफर्म हो गई। पिता के साथ कॉलेज काउंसलिंग में पहुंची रुपाली को बताया गया तुरंत एडमिशन लेना होगा।

एडमिशन के साथ ही 1 लाख 10 हजार रुपए जमा करना था। पिता ने सीट रुकवाने के लिए तत्काल में 10 हजार जमा कर दिया और बाकी के इंतजाम में लग गया पर लाख कोशिशों के बाद भी इतने पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया। पिता को परेशान देखकर बेटी रुपाली को लगा कि उसकी वजह से उन्हें दिक्कत हो रही है इसलिए उसने जीवन को खत्म करने की सोची और जहर खाकर जान दे दी।


आत्महत्या का ये कोई अनोखा मामला नहीं है। देश को ऐसे मामलों की आदत हो गई है। कॉलेजों की मंहगी फीसों ने न जाने कितनो के घरों के चिराग बुझा दिए हैं। सच है आत्महत्या किसी भी परेशानी का इलाज नहीं है पर अपनी ही आंखो के आगे अपने सपने को टूटते देखने की शक्ति कहां से आए। जिन लोगों के हाथों में जिम्मेदारी है उन्होंने आंखे बंद कर ली है। सरकारी योजनाओं के सामने एक छन्नी लगा दी गई है जो कुछ खास लोगों के ही बीच रह जाती है।

शिक्षा के लिए अगर कोई आत्महत्या कर रहा है तो देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। एक पिता के सपनों में होता है कि उसका बच्चा पढ़ लिखकर डाक्टर, इंजीनियर और अफसर बने इसके लिए वह जमकर हाड़तोड़ मेहनत करता है पर जब पैसों के कारण वह हार जाता है तो वह खुद से ज्यादा बदनसीब समझता है। ऐसे बदनसीब पिता इस देश में बहुत हैं। अपंग सिस्टम ने उन्हें मौत के लिए खुला छोड़ दिया है।

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