आदिवासी समाज को UCC का डर, पढ़िये कौन सी प्रथाओं पर पड़ सकता है असर
Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता (UCC) का विरोध रुकने का नाम नहीें ले रहा है। इस कड़ी में आदिवासियों का नाम भी जुड़ चुका है, जिनको कहना है कि यूसीसी लागू होने से उनके रीति-रिवाज प्रभावित होंगे। आइए, जानते हैं कुछ आदिवासी समुदायों (Tribal Community) की परंपराएं और उनकी शादी करने के तौर-तरीके पर...;
Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर शुरू हुआ विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। भोपाल के एक कार्यक्रम में जैसे ही पीएम नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने UCC का जिक्र किया, मुसलमानों, सिखों से लेकर आदिवासियों तक सबने जमकर विरोध शुरू कर दिया। बताया जा रहा है कि केंद्र के इस निर्णय का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम समाज और आदिवासी समाज (Tribal Society) के लोग कर रहे हैं। कई आदिवासी संगठन ऐसे भी हैं, जो केंद्र सरकार के इस कदम का जमकर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर यह कानून लागू किया जाता है, तो उनके रीति-रिवाज समाप्त हो सकते हैं।
चूंकि आदिवासी समाज में ऐसी कई परंपराएं हैं, जो समान नागरिक संहिता के लागू होने से प्रभावित हो सकती हैं। उदाहरण के तौर पर कई आदिवासी समाज में प्रथा है कि लड़की की शादी होने तक उसके भरण पोषण का भार परिवार पर रहता है। अगर वह शादी नहीं करती तो भी उसके भरण पोषण की जिम्मेदारी भी परिवार ही निभाता है। इसके उलट अगर शादी हो गई तो महिला का अधिकार केवल ससुराल में उसके पति के हिस्से पर ही होता है। आदिवासी समाज को डर है कि यूसीसी आने पर आदिवासी समाज की इस प्रथा पर असर पड़ सकता है और विवाह के बावजूद महिला पर अपने ससुराल की संपत्ति पर अधिकार का हक मिल जाएगा।
इसके अलावा आदिवासी समुदाय में एक पुरुष कई महिलाओं से शादी कर सकता है या एक महिला कई पुरुषों से शादी कर सकती है। इसके अलावा इस समाज में शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप (Live in Relationship) में रहने की भी प्रथा है। आदिवासी समाज को यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने से इन पर भी असर पड़ने का डर सता रहा है। आगे बताते हैं कि आदिवासी समाज की विभिन्न प्रथाओं के बारे में...
भील समाज में शादी के वक्त उल्टे फेरे लेते हैं वर-वधू
गुजरात और राजस्थान में रहने वाले भील समाज के वर-वधू शादी के वक्त उल्टे फेरे लेते हैं। इस रस्म के पीछे का कारण है, धरती का उल्टा घूमना। उनका मानना है कि वे अपना जीवन प्रकृति के अनुसार जीते हैं, इसलिए रस्में भी प्रकृति के सम्मान में ही निभाई जानी चाहिए। भील जनजाति के लोग किसी अन्य जाति, धर्म में शादी तो कर सकते हैं लेकिन अपने गोत्र में शादी करने पर सख्त मनाही है। ऐसा करने वालों का समाज से बहिष्कार कर दिया जाता है।
राजस्थान के मीणा आदिवासियों में लगता है सांस्कृतिक मेला
राजस्थान की मीणा आदिवासियों में सांस्कृतिक तौर पर एक मेला लगाया जाता है। मेले में शामिल युवक-युवती एक दूसरे के साथ कई तरह के खेल खेलते हैं। इस क्रम में अगर वे एक-दूसरे को पसंद आ गए तो दोनों की शादी हो जाती है। इस समाज में फेरे के समय लड़की के माता-पिता मंडप में नहीं बैठ सकते। ऐसी मान्यता है कि यह नवदंपति की खुशी के लिए जरूरी है।
छत्तीसगढ़ के माड़िया आदिवासी शादी से पहले निभाते हैं घोटुल
छत्तीसगढ़ के माड़िया आदिवासी शादी से पहले घोटुल नामक रस्म को निभाते हैं। घोटुल में आने वाले लड़के-लड़कियों को अपना जीवनसाथी चुनने की छूट होती है। इस रस्म में लड़का-लड़की शादी से पहले एक साथ एक घर में रह सकते हैं और शारीरिक सम्बन्ध भी बना सकते हैं। इस रस्म को राज्य के बस्तर क्षेत्र में निभाया जाता है। इस रस्म को निभाने के लिए 10 साल से ज्यादा उम्र होनी चाहिए।
झारखंड के संथाल समाज में शादी करने के 12 तरीके
झारखंड में संथाल नाम की एक जनजाति निवास करती है। इनमें 12 तरीकों से शादियां होती हैं। उनमें से एक तरीका है ‘सादय बपला’, जिसमें शादी करने में दोनों परिवारों की सहमति आवश्यक होती है। दूसरे तरह के विवाह को ‘घरदी जवाय’ कहा जाता है। इस तरीके से शादी तभी होती है, जब लड़की का भाई नाबालिग हो। लड़का अपनी पत्नी के भाई के बालिग होने तक ससुराल में ही रहता है। इसके बाद वह अपनी पत्नी के साथ घर लौट जाता है।
मेघालय का आदिवासी समाज मातृसत्तात्मक
इसके अलावा मेघालय में रहने वाली गारो, खासी और जयंतिया नामक जनजातियों में मातृसत्तात्मक प्रथा है। इनके परिवारों माता-पिता की कुल संपत्ति सबसे छोटी बेटी को विरासत में मिलती है। इसके अलावा शादी के बाद पुरुष अपना घर छोड़कर ससुराल में बस जाता है। राज्य के कुछ आदिवासी समुदायों में लड़का-लड़की दोनों शादी के बाद अपने माता-पिता का घर छोड़ देते हैं।
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हमारा पक्ष लिए बिना इस कानून पर चर्चा गलत: अरविंद नेताम
प्रमुख आदिवासी नेता अरविंद नेताम (Tribal leader Arvind Netam) का कहना है कि आदिवासी समाज भविष्य की रणनीति के लिए बैठक करने की तैयारी कर रहा है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, सिर्फ छत्तीसगढ़ में 78 लाख आदिवासी निवास करते हैं, जो राज्य की कुल आबादी का 32 फीसदी है। इसलिए हमारा पक्ष लिए बिना इस कानून पर चर्चा बिल्कुल गलत है।
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2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 10.43 करोड़ आदिवासी
दरअसल, आदिवासी लोग आमतौर पर मुख्यधारा के समाज से अलग रहते हैं। इनका समाज और इनके रीति-रिवाज आम लोगों से काफी अलग होते हैं। आदिवासी समाज अपने नियम- कानून स्वयं बनाते हैं और उसे मानते भी हैं। बहुत सारे आदिवासी समुदाय के लोग किसी भगवान को नहीं मानते, उनके लिए प्रकृति ही सब कुछ है। सामान्य तौर पर आदिवासी जंगलों और पहाड़ों में रहते हैं। भारत में कुल 705 आदिवासी समूह हैं, जो देश में सरकारी तौर पर अनुसूचित जनजातियों के रूप में सूचिबद्ध हैं। साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार, भारत में आदिवासियों की आबादी 10.43 करोड़ है। यह देश की कुल जनसंख्या का 8% से ज्यादा है। इनमें से ज्यादातर आदिवासी समुदाय मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में रहते हैं।