Uttarkashi Tunnel Collapse: रैट होल माइनिंग अब 41 मजदूरों के लिए उम्मीद, 2014 में एनजीटी ने लगाया था बैन
Uttarkashi Tunnel Collapse: रैट होल माइनिंग तकनीक का इस्तेमाल कर मजदूरों को बाहर निकालने की कोशिश की जा रही है। पढ़ें क्या होती है रैट होल माइनिंग तकनीक...;
Uttarkashi Tunnel Collapse: उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को अब किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद है। बचाव कार्य में लगी अमेरिकी ऑगर मशीन भी खराब हो गई है और मलबे में फंसे उसके ब्लेड को काटकर बाहर निकाला गया है। बार-बार आ रही बाधाओं को देखते हुए बचावकर्मियों ने चूहों की तरह खुदाई करने का फैसला किया है। अब रैट होल खनन के विशेषज्ञ हाथ के औजारों से पहाड़ों की खुदाई कर रहे हैं। इस काम में मदद के लिए झांसी के परसादी लोधी और विपीन राजपूत पहुंचे हैं। आइए जानते हैं कि रैट होल माइनिंग क्या है, किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
रैट होल माइनिंग क्या है
मेघालय में रैट होल ड्रिलिंग काफी फेमस है। इस विधि का इस्तेमाल जमीन में खोदे गए गड्ढों से कोयला निकालने के लिए किया जाता है। माइनर्स रस्सियों या बांस की सीढ़ी के सहारे गड्ढों के अंदर जाते हैं। इसके बाद ये लोग फावड़े और टोकरी जैसे हाथ के औजारों का इस्तेमाल करके कोयला निकालते हैं। रैट होल माइनिगं दो तरीकों से की जाती है। पहला है साइड कटिंग प्रक्रिया और दूसरा बॉक्स कटिंग। साइड कटिंग प्रक्रिया के तहत एक संकरी सुरंग तैयार की जाती है, जबकि बॉक्स कटिंग के तहत एक वर्टिकल गड्ढा खोदा जाता है।
किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है
रैट-होल माइनिंग से पर्यावरण के लिए खतरा पैदा होने की ज्यादा संभावना है। इस तरह के खनन से खदानें अनियमित हो जाती हैं और ढह जाती हैं, जिससे मजदूर फंस जाते हैं और उनकी जान भी चली जाती है। खनन के लिए वनों को भी काटा जाता है और भूमि निम्नीकरण तथा जल प्रदूषण जैसी समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं।
एनजीटी ने क्यों लगाई रोक
2014 में एनजीटी ने मेघालय में रैट होल माइनिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह क्रम साल 2015 में भी बरकरार रहा। इसके बाद राज्य सरकार ने एनजीटी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। एनजीटी ने अपने आदेश में साफ किया था कि बरसात के मौसम में रैट होल माइनिंग बेहद खतरनाक होती है, क्योंकि इस दौरान खदानों में पानी भर जाता है, जिससे मजदूर फंस जाते हैं और मर जाते हैं। वहीं, उत्तराखंड सरकार के नोडल अधिकारी नीरज खैरवाल ने साफ किया कि रेस्क्यू साइट पर लाए गए लोग रैट माइनर्स नहीं बल्कि इस तकनीक में विशेषज्ञ लोग हैं।